Hum Bezubaan Hum Begunaah
हूँ मै जो एक बेजुबान
क्या था गुनाह जो ,
ये सब हुआ
रोते हुए मेरी चीखो को क्यों ,
तूने हो जालिम क्यों ना सूना
है कैसी ये तेरी
है फितरत ओ जालिम
जो हमको तबाह किया
घर को हमारे क्यूँ तोड़ा रे तूने
जिस्मो को क्यूँ रोंद डाला
अंधेरी रातो का वो खुनी था मंजर
क्यों तूने हमको दिखाया बता
हम बेजुबान हम बेगुनाह
जाए तो जाए कहां
हम बेजुबान हम बेगुनाह
जाए तो जाए कहाँ
कहाँ
पेड़ो की छाया में पलते रहे
हर दिन तो तुझसे हम छिपते रहे
बचते थे रहते कहीं मर ना जाए
हाथो से ओ इंसान रे
पर तूने मार ही डाला
तूने हमे अब बता क्या है आखिर
हुई गलतिया
ना कोई की हिंसा
ना माँगा कुछ तुझसे
मरते रहे हम तेरी भूख से
शिकारी तू मानव
है तू ही तो दानव
है खून से है तेरे हाथ
रंगे हुए
हम बेजुबान हम बेगुनाह
जाए तो जाए कहां
हम बेजुबान हम बेगुनाह
जाए तो जाए कहाँ
कहाँ
सुनले जरा ले ले बददुआ
होगी तेरी भी ऐसे ही मृत्यु
टूटेंगे घर तेरे भी कभी
निकलेगी तेरी भी चींखे कभी
खोएगा अपने हाँ तू भी कभी
मै आवाज हु
उस मोर की
उस हाथी की उस हिरनी की
जिसको है तूने रुसवा किया
हम बेजुबान हम बेगुनाह
जाए तो जाए कहां
हम बेजुबान हम बेगुनाह
जाए तो जाए कहाँ
कहाँ
Hum Bezubaan Hum Begunaah Written by Pardeep Sharma Reg.SWA
Pardeep 100X